जब लक्षद्वीप को हड़पने निकले थे, पाकिस्तानी जहाज फिर कैसे बना भारत का हिस्सा क्यों भारतीय टूरिस्ट को लेना पड़ता है परमिट-
पीएम मोदी के लक्षद्वीप डर की तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं अरब सागर में पाने की तरह हरा दिखता यह द्वीप समूह वैसे तो भारत का ही हिस्सा है लेकिन इस बात को कम ही लोग जानते हैं कि यह लक्षद्वीप भारत को मिला कैसे-
महात्मा गांधी की हत्या के कुछ हफ्तों बाद लक्षद्वीप तक इसकी खबर पहुंची देश के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान की नजर इस पर भी पड़ी थी, फिर कैसे बना लक्षद्वीप भारत का हिस्सा
भारत पाकिस्तान विभाजन के दौरान जिन्ना चाहते थे, कि हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ मुस्लिम बहुल होने के वजह से उनके देश में शामिल हो जाए सरदार वल्लभ भाई पटेल की हिम्मत और सूझबूझ ने इन रियासतों को भारत से अलग होने से रोक लिया जब यह बड़े सूबे भारत में मिले जा रहे थे उसे दौरान लक्षद्वीप बचा हुआ था।
असल में दूर दराज होने की वजह से उसे पर दोनों में से किसी देश का ध्यान तुरंत नहीं गया था, दोनों अपनी-अपनी तरह से में लाइन रियासतों को अपने साथ करने की कोशिश में थे सरदार पटेल ने अपनी दूरदर्शिता से साढ़े 500 के करीब रियासतों को भारत में मिल लिया था। 1947 में अगस्त आखिरी दिनों की बात है जब दोनों देशों की इस पर नजर पड़ी व्यापार व्यवसाय से लेकर सेफ्टी के लिहाज से भी यह द्वीप समूह काफी जरूरी था।
लगभग एक साथ ही गया दोनों देशों का ध्यान- पाकिस्तान ने सोचा कि मुस्लिम मेजॉरिटी होने की वजह से क्यों ना लक्ष्यदीप पर कब्जा कर लिया जाए करीब करीब इस समय सरदार पटेल का भी इस पर ध्यान गया, उन्होंने दक्षिणी रियासतों के मुदालियार भाइयों से कहा कि वे सी लेकर फटाफट लक्ष्यद्वीप की ओर निकल जाएं रामास्वामी और लक्ष्मण स्वामी मुदालियार वहां पहुंच गए और तिरंगा फहरा दिया अलग-अलग वेबसाइट में जिक्र है कि भारत के पहुंचने के कुछ देर बाद ही पाकिस्तान युद्ध पोत भी वहां पहुंचा लेकिन भारतीय झंडे को फहरता देख वह तुरंत वापस लौट गया इस तरह से लक्काद्वीप, मिनीकाय और अमीदिवी द्वीप समूह भारत का हिस्सा बन गए।
पहले भी रह चुका मैसूर रियासत का अंग-
लक्षद्वीप के मिनिकॉय हिस्से पर मैसूर के टीपू सुल्तान का भी साम्राज्य रह चुका हैसाल 1799 में टीपू सुल्तान की हत्या के बाद यह द्वीप ब्रिटिश हुकूमत के अधीन चल गया था भाषा के आधार पर पहले इसे मद्रास रेजीडेंसी ऑफ इंडिया से जोड़ा गया था, क्योंकि दीप पर ज्यादा लोग दक्षिण भाषाएं बोलते थे भारत को झंडा फहराने के बाद 1 नवंबर 1956 को भारतीय राज्यों के पुनर्गठन के दौरान प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए लक्षद्वीप को मद्रास से अलग कर एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में गठित किया गया साल 1971 में इन आईलैंड्स का सम्मिलित नाम पड़ा- लक्षद्वीप।
बौद्ध और हिंदू आबादी ने अपनाया इस्लाम-
सबसे पहले लक्षद्वीप का जिक्र ग्रीक घुमंतुओं ने किया थावे इस दीप को बेहद खूबसूरत और आशुआ बताते हुए कहते थे कि वहां समुद्री कछुओं का शिकार आराम से हो सकता है सातवीं सदी के आसपास यहां ईसाई मिशनरी और अरब व्यापारी दोनों ही आने लगे और धार्मिक रंग रूप बदलने लगा इसके पहले यहां बौद्ध और हिंदू आबादी हुआ करती थी 11वीं सदी में डेमोग्राफी बदली और ज्यादातर ने इस्लाम अपना लिया 2011 की जनगणना के अनुसार लक्ष्यद्वीप की आबादी 64429 थी जिसमें 93% जनसंख्या जो स्वदेशी है मुस्लिम है और उसमें से अधिकांश सुन्नी संप्रदाय के सफी स्कूल से संबंधित हैं।
लक्षद्वीप में कौन-कौन सी भाषाएं बोली जाती हैं-
मलयालम को मिनिकॉय को छोड़कर सभी दीपों पर बोली जाती है, जहां लोग महहे बोलते हैं जो दिवेही लिपि में लिखे जाते हैं और मालदीप में भी बोली जाती है।
भारत के लिए क्यों जरूरी है लक्षद्वीप-
36 छोटे-छोटे द्वीपों का यह समूह देश की सुरक्षा के लिहाज से काफी अहम है भारतीय सुरक्षा थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन आफ इंडिया के अनुसारजैसे अंडमान और निकोबार द्वीप प्रशांत से हिंद महासागर में एंट्री और एग्जिट प्वाइंट हैं उतना ही अहम रोल लक्षद्वीप का भी है, यह अरब सागर में विंटेज पॉइंट की तरह काम करते हैं मतलब यहां से दूर-दूर तक के जहाज पर नजर रखी जा सकती है, चीन के बढ़ते समुद्री दबदबे के बीच भारत लक्षद्वीप में मजबूत बेस तैयार कर रहा है ताकि समुद्र में हो रही एक्टिविटी पर नजर रखी जा सके।
क्यों चाहिए होता है परमिट-
लक्षद्वीप भले ही भारत का हिस्सा हो परंतु आपके यहां जाने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है। लक्ष्यद्वीप टूरिज्म की वेबसाइट के मुताबिक ऐसा वहां मौजूद आदिवासी जनजाति समूहों की सुरक्षा और उनके कल्चर को बचाए रखने की दृष्टि से किया जा रहा है वेबसाइट के अनुसार द्वीप पर 95% आबादी सेंट यानी जनजाति है, यूनियन टेरिटरी एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ लक्षद्वीप में साफ है कि सिर्फ सेना के जवान जो यहां काम कर रहे हो उनके परिवार और सरकारी अधिकारियों को इस परमिट में छूट मिलती है।
ई-परमिट लिया जा सकता है-
इसके लिए एक फॉर्म भरना होता है जिसकी फीस ₹50 है इसके अलावा आईडी की सेल्फ अटेस्टेड कॉपी और पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट चाहिए होता है। परमिट मिलने के बाद ट्रैवलर को लक्षद्वीप पहुंचकर पुलिस थाने में उसे सबमिट करना होता है ट्रैवल एजेंट की मदद से कोच्चि से भी यह परमिट बनाया जा सकता है।
Q- भारत के लिए क्यों जरूरी है लक्षद्वीप?
Ans- यह अरब सागर में विंटेज पॉइंट की तरह काम करते हैं मतलब यहां से दूर-दूर तक के जहाज पर नजर रखी जा सकती है, चीन के बढ़ते समुद्री दबदबे के बीच भारत लक्षद्वीप में मजबूत बेस तैयार कर रहा है ताकि समुद्र में हो रही एक्टिविटी पर नजर रखी जा सके।
Q- लक्षद्वीप में कौन-कौन सी भाषाएं बोली जाती हैं?
Ans- मलयालम को मिनिकॉय को छोड़कर सभी दीपों पर बोली जाती है, जहां लोग महहे बोलते हैं जो दिवेही लिपि में लिखे जाते हैं और मालदीप में भी बोली जाती है।